Interesting Story of Indian Railway Toilet installing

ट्रेन में आप सभी ने कभी न कभी सफ़र तो किया ही होगा। इसके अलावा आपने कभी न कभी जरूर ट्रेन के टॉयलेट का इस्तेमाल भी जरूर किया होगा भले ही ये टॉयलेट गंदे ही क्यों न हो। लेकिन क्या आपको मालूम है कि जब ट्रेन चलने की शुरुआत हुई तब ट्रेनों में बाथरूम नहीं हुआ करते थे। लोगों को बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। एक ऐसी घटना हुई तब जाकर सरकार को ट्रेन में टॉयलेट की व्यवस्था करनी पड़ी। यह घटना बहुत ही रोचक और दिलचस्प है। आइये इस बारे में विस्तार से जानते हैं। 


अनुमान के मुताबिक़,  दो दिन की लंबी ट्रेन यात्रा में कम से कम तीन बार लोग टॉयलेट  का उपयोग करते है।  इन शौचालयों को इतना अधिक महत्व दिया जाता है कि आपको विश्वास नहीं होगा कि पहले ट्रेनों में शौचालय नहीं हुआ करते थे। इन शौचालय को इंस्टाल करने की कहानी बहुत दिलचस्प है। 


भारतीय ट्रेनों में शौचालयों की शुरूआत भारतीय रेलवे के इतिहास की एक दिलचस्प कहानी है। कहानी इतनी मनोरंजक है कि मिस्टर इंग्लिश ग्रामर कुछ पल के लिए छुट्टी पर चले गए थे। दरअसल रेलवे को यात्री से जो पत्र अंग्रेजी में लिखा गया था उसमे कई सारी गलतियाँ थी लेकिन परेशानी रेलवे अधिकारियों को समझ में आई। 

भारत में ट्रेन के 55 साल चलने के बाद भी ट्रेनों में नहीं थे शौचालय 

1909 तक भारत में रेलवे को चलते हुए लगभग 55 साल हो चुके थे तब तक भारत की ट्रेनों में शौचालय नहीं हुआ करते थे। यात्रियों को स्टेशनों पर उतरकर  टॉयलेट जाना होता था। 


भारतीय रेलवे भारत की परिवहन प्रणाली की रीढ़ और जीवन रेखा है। यह दुनिया की सबसे बड़ी यातायात संस्था मानी जाती है। भारतीय रेलवे का इतिहास 170 साल पुराना है। 

भारत में पहली यात्री ट्रेन 1853 में चालू हुई जब तीन लोकोमोटिव कोच - सुल्तान, साहिब और सिंध - तेरह डिब्बे बॉम्बे से ठाणे के बीच चले।

कैसे हुए ट्रेन में शौचालय लगने की शुरुआत 

2 जुलाई, 1909 को एक भारतीय रेल यात्री ओखिल चंद्र सेन ने पश्चिम बंगाल में साहिबगंज मंडल कार्यालय को एक पत्र लिखकर भारतीय रेलवे में शौचालय स्थापित करने का अनुरोध किया।

रेलवे अधिकारियों को श्री सेन का पत्र बहुत ही मार्मिक जान पड़ा क्योंकि ओखिल चन्द्र सेन ने अपनी परेशानी ही इस कदर लिखी थी। अपने पत्र में उन्होंने लिखा था कि  उन्कैहें जब पेशाब या टॉयलेट आता है तो जब स्टेशन पर करने के लिए उतरते है तो अक्सर उनकी ट्रेन छूट जाती है। 


ओखिल चन्द्र का यह पत्र मिलने के बाद रेलवे अधिकारियों के पास उस समय 50 मील से ज्यादा चलने वाली ट्रेनों में सभी निम्न श्रेणी की गाड़ियों में शौचालय लगाने का ख्याल आया। 

आज भी यह पत्र रखा है रेलवे संग्रहालय में 


हालांकि ओखिल ने जो पत्र लिखा था उसमे कई अंग्रेजी ग्रामर से सम्बंधित गलतियाँ थी, लेकिन यह पत्र भारतीय रेलवे के इतिहास में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बन गया। सभी रेल यात्रियों को राहत देने वाला पत्र अब कथित तौर पर नई दिल्ली में रेलवे संग्रहालय में रखा गया है। 
 

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