यह बात वर्ष 1988 की है, जब जबलपुर निवासी पल्लवी सोमैया दूसरी बार मां बनी। इस बार भी उन्होंने बेटे को जन्म दिया। बच्चे का नाम उमंग रखा गया।

बच्चे के जन्म पर उन्हें बेहद खुशी हुई, लेकिन उमंग जैसे-जैसे बड़ा होता गया तो पता चला कि उनका बेटा बोल-सुन नहीं सकता है। 

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यानि मूक बधिर है। पल्लवी के पति नरेंद्र सोमैया एक बिजनेसमैन थे तो उन्होंने बच्चे की इस बीमारी का बहुत इलाज कराया। मगर हर जगह से एक ही जवाब मिला कि ये बच्चा जीवनभर ऐसा ही रहेगा।

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माँ ने नहीं मानी हार

धीरे-धीरे बच्चे के गूंगे-बहरे होने की सच्चाई समाज में फैल गई। रिश्तेदारों को भी पता चल गया। सच्चाई पता चलने पर लोग उनसे सहानुभूति दिखाने लगे।

लोगों के सहानुभूति की बात माँ पल्लवी को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने डॉक्टर और मेडिकल साइंस को चुनौती देने का मन बना लिया।

माँ पल्लवी ने बच्चे को नॉर्मल बच्चों जैसे करने के लिए मुंबई में अली यावरजंग इंस्टीट्यूट फॉर हियरिंग हैंडिकैप में दो महीने की स्पेशल ट्रेनिंग ली।

इस ट्रेनिंग के बाद उन्होंने बच्चों को घर पर ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। फिर दो वर्ष बाद उमंग का स्कूल में दाखिला करा दिया गया।

स्कूल में जहाँ एक बाकी बच्चे उमंग का मजाक उड़ाते थे। वहीं, दूसरी तरफ उमंग ने अपनी माँ पल्लवी के हौसले के बलबूत उन सबको अपना दोस्त बना लिया।

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इसके बाद माँ की ट्रेनिंग के दौरान उमंग ने इयररिंग पहनना शुरू कर दिया, जिससे उसे कुछ कुछ सुनाई भी देने लगा।

माँ की मेहनत और ट्रेनिंग का नतीजा यह हुआ कि उमंग कॉलेज, इलेक्ट्रिशियन डिप्लोमा, मल्टीमीडिया कोर्स तक की पढ़ाई नॉर्मल बच्चों के साथ पास कर चुका था।

आज की तारीख में उमंग 80 प्रतिशत तक नॉर्मल बच्चों की तरह बोलने सुनने लगा है। जिसे देखकर कोई उसे मूक बधिर की श्रेणी में नहीं रख सकता है। वर्ष 2015 में उमंग की शादी भी हो गई।

पैसे को बहुत ऑफर आए 

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मूक बधिरों के लिए उम्मीद की किरण बनी पल्लवी सोमैया बताती हैं कि जब उमंग ने कॉलेज जाना शुरू किया तो ये बात कुछ मूक बधिर बच्चों के माता-पिता को पता चली।

उन्होंने अपने बच्चों को ट्रेन करने के लिए मुझे पैसे तक ऑफर किए, जिस पर मैं कहती थी कि माँ जो खुद कर सकती है वो कोई टीचर या मेंटर नहीं कर सकता।

पल्लवी ने दो दर्जन से ज्यादा बच्चों को नॉर्मल किया है तथा उनके परिजनों से कोई पैसा नहीं लिया। उन्हें निःशुल्क ट्रेनिंग दी गई।

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पल्लवी अपने अनुभव बताते हुए कहती हैं कि कुछ परिजन हफ्ते या 15-15 दिन में उनके पास एक दिन के लिए आते हैं या कॉल पर ही जानकारी लेते हैं और अपने बच्चों पर उनके बताए अनुसार वे एप्लाई करते हैं।

पल्लवी ने जानकारी दी कि अबतक करीब 25 से ज्यादा मूक बधिर बच्चे नॉर्मल बच्चों की तरह बोलने सुनने लगे हैं, इनमें कुछ अपने पैरों पर खड़े हो चुके हैं तो कुछ अभी पढ़ाई कर रहे हैं।

मैं हर उस माता पिता को सपोर्ट करती हूं जो अपने किसी विकृति से ग्रसित बच्चों के लिए परेशान रहते हैं।

क्या है मकसद

पल्लवी सोमैया का कहना है कि वह इस सब सेवा के पीछे सिर्फ एक बात रखती हैं कि ये बच्चे समाज से उपेक्षित न हों बल्कि मुख्यधारा में जुडकऱ आगे बढ़ें।

पल्लवी मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को भी सक्षम बनाने का काम कर रही हैं ताकि वे किसी पर बोझ न बनें, बल्कि स्वयं के काम कर सकें। वे अपने लिए यहीं कहती हैं.... मैं मदद के लिए तैयार हूं...

 

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