होली(Holi) के पावन त्योहार को हिंदुओं का प्रमुख माना जाता है। इस रंगों के त्योहार में होलिका दहन के दिन लोग अपनी तमाम बुराइयों को जलाकर राख कर देते हैं। तो चलिए जानते हैं कि इस साल होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है। और पूजा, विधि और कथा कैसे करें।

होली शुभ मुहूर्त 2020 (Holi shubh muhurat 2020 in Hindi)

9 मार्च को होलिका दहन किया जाना है। इसका शुभ मुहूर्त शाम को शुरू होगा।

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त - शाम 6 बजकर 22 मिनट से शुरू होकर रात के 8 बजकर 49 मिनट तक।

भद्रा पूंछ का मुहूर्त - सुबह 9 बजकर 37 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 38 मिनट तक।

भद्रा मुख का मुहूर्त - सुबह 10 बजकर 38 मिनट से शुरू होकर दोपहर 12 बजकर 19 मिनट तक।

पूर्णिमा तिथि आरंभ - सुबह 3 बजकर 3 मिनट से तक (9 मार्च 2020) 

पूर्णिमा तिथि समाप्त - रात 11 बजकर 16 मिनट तक (9 मार्च 2020)

होली का महत्व (Importance of Holi)

Holi

भारत में होली त्योहार के महत्व बहुत कम लोग वाकिफ हैं। ये त्योहार फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी के दिन मनाया जाता है।

भारत में होली के त्योहार को बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन होलिका दहन करने की परंपरा है और इसके अगले दिन रंग खेले जाते हैं। जिसे रंगावली या दुलंडी के नाम से भी जाना जाता है।

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पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, इस दिन हिरण्यकश्यप की बहन 'होलिका' जिसे अग्नि से न जलने का वरदान हासिल था ; वो भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्वाद को लेकर अग्नि में बैठ गई थी, लेकिन प्रह्वाद को कुछ भी नही हुआ और होलिका खुद ही उस अग्नि में भस्म हो गई।

होली की पूजा विधि (Holi 2020)

Holi

1- होली की पूजा शाम के समय की जाती है। इस मंगलकार्य के लिए आप उत्तर या पूर्व की दिशा में अपना मुख करके बैठ जाएं।

2- फिर अपने आप-पास पानी की बूंदें छिड़कें। इससे आपके आस-पास मौजूद सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जाओं का अंत हो जाता है।

3- इस विधि के बाद होलिका बना लें या अगर किसी जगह होलिका बनी हो तो वहां जाकर पूजन आरंभ करें। कोई भी पूजन करने से पहले गणेश जी का पूजन करनेा जरूरी होता है।

4- होलिका पूजन के लिए एक थाली में रोली, कच्चा सूत, चावल, फूल, साबुत हल्दी, बताशे, फल और एक लोटा पानी लें।

5- इस क्रिया के बाद नरसिंह भगवान को याद करें और होलिका पर रोली, चावल, फूल, बताशे चढ़ाएं और मौली (लाल कलावा) को होलिका के चारों ओर लपेटें। 

6- इतना होने के बाद होलिका पर प्रह्वाद का नाम लेकर फूल चढ़ाएं। और फिर  नरसिहं भगवान का नाम लेते हुए पांच अनाज चढ़ाएं। 

7- इसके बाद अपना नाम लेकर, अपने पिता का नाम और गोत्र का नाम लेते हुए होलिका पर चावल चढ़ाएं।

8- पूजा विधि के आखिरी पड़ाव में होलिका दहन करें। फिर दोनों हाथ जोड़कर नमन करते हुए उसकी परिक्रमा करें।

9- जलती हुई होलिका में किसी भी रंग का गुलाल अर्पित करें और फिर अपने बड़े-बुजुर्गों के पैरों में गुलाल लगाकर उनका आर्शीवाद प्राप्त करें।

10- होलिका दहन के समय बालें बुझने का भी रिवाज होता है। इस दिन बालें बुझकर अपने परिवार वालों और मित्रों को शुभकामनाएं भेंट करें।

होली की कथा ( Holi 2020)

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पौराणिक कथाओं में स्पष्ट कहा गया है कि प्रह्लाद असुर राज हिरण्यकश्यप का पुत्र था। हिरण्यकश्यप अपने पुत्र से सिर्फ इसलिए नफरत करता था क्योंकि उसका पुत्र प्रह्लाद हमेशा भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था।

प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था इसलिए उसका पिता उसकी हत्या करना चाहता था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद की हत्या के कई प्रयास किए। मगर वो नाकाम रहा। इस बुरे में काम उसने अपनी बहन होलिका की भी सहायता ली, लेकिन वो कभी सफल न हो सका।

हिरण्यकश्यप ने कई वर्षों तक ब्रह्मदेव की घोर तपस्या करके अमर होने का वरदान हासिल कर लिया था। उसने ये भी ब्रह्लादेव से मांगा था कि उसे जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य, रात, दिन, पृथ्वी, आकाश, घर, या बाहर न मार सके।

इस वरदान के कारण हिरण्यकश्यप को बहुत ज्यादा अंहकार हो गया था वो सिर्फ ये चाहता था कि धरती पर सिर्फ उसकी ही पूजा की जानी चाहिए। मगर उसका पुत्र प्रह्लाद सदा ही विष्णु की भक्ति में डूबा रहता था। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को विष्णु की भक्ति न करने को कई बार कहा।

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मगर प्रह्लाद अपनी भक्तिहठ से एक कदम भी पीछे नहीं हटा। हिरण्यकश्यप ने कई आसुर राक्षकों द्वारा प्रह्लाद पर हमले कराए। मगर हिरणकश्यप सदा ही असफल रहा। इस कारण से असुर राज हिरण्कश्यप परेशान रहने लगा था।

जब उसकी बहन होलिका ने उसकी परेशानी का कारण पूछा तो उसने अपनी सारी चिंताएं, दुविधाएं और परेशानियां बता दीं। इसके बाद होलिका ने अपने भाई से चिंतित न होने के लिए कहा क्योंकि उसके पास अग्नि से न जलने का वरदान हासिल था। होलिका ने अपने इसी वरदान का फायदा उठाकर प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठ गई।

इस पर होलिका का कोई भी वरदान काम न आया और वो जलकर राख हो गई और प्रह्लाद भगवान विष्णु की कृपा से जीवित बच गया। उस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हो गई और तब से ही होली का त्योहार मनाया जाने लगा।

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