वर्तमान में हम 21वीं सदी में जी रहे हैं जहां विज्ञान का उपयोग करके कुछ भी और सब कुछ समझाया जा सकता है। हमें अब अपना सिर छकाने और डरने की ज़रूरत नहीं है। हालांकि कुछ ऐसी भी चीजें हैं जिन्हें विज्ञानं भी नहीं समझ चुका है। कुछ ऐसी जगहें जोकि काफी रहस्मयी है कि विज्ञान भी नहीं बता पा रहा है कि आखिर इन जगहों पर क्या है। इन जगहों पर विज्ञान का उपयोग करके सभी चीजों को नहीं समझाया जा सकता है। 

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21वीं सदी में भी कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें विज्ञान नहीं समझा सकता। दरअसल, इस धरती पर कुछ ऐसे स्थान हैं जहां रहस्यमयी चीजें घटित होती हैं। इन जगहों में कुछ ऐसा है जो आज भी समझ से बाहर है। इस आर्टिकल में उन्ही 5 चीजों के बारे में बताया जा रहा है। 

1- हेसडेलन लाइट्स

दशकों से नॉर्वे के हेसडेलन घाटी के लोग रात में आसमान में इन जादुई रोशनी को देख रहे हैं। यह प्रकाश उनके आकाश में प्रकट होता है। इस प्रकाश का पैटर्न ऐसा रहता है कि यह चारों ओर नाचता रहता है। कभी-कभी यह प्रकाश कई रंगों में भी चमकता है। यह सालों से बहुत से लोगों द्वारा देखा गया है और कोई भी पुष्टि नहीं कर सका कि आखिर यह क्या चीज है। 

हेसडेलन लाइट्स

कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह यह क्षेत्र जहाँ यह प्रकाश दिखता है वह रेडियोधर्मी क्षेत्र है। विकिरण धूल के कणों द्वारा यह प्रकाश जाया जाता है और वायुमंडल में पहुंचने पर विस्फोट हो जाता है। एक और सिद्धांत जो सामने आया है वह यह है कि पूरी घाटी एक विशालकाय बैटरी हो सकती है। यह एक स्थापित तथ्य है कि इन घाटियों में से एक घाटी में बहुत ज्यादा ताम्बा है जबकि दूसरी घाटी में जस्ता प्रचुर मात्रा में है। घाटी के नीचे नदी में सल्फ्यूरिक एसिड होता है। 

2- कजाकिस्तान की नींद की महामारी


कजाकिस्तान में कालाची नाम का एक कस्बा है जहां लोगों के बिना किसी वास्तविक कारण के बेहोश हो जाने की खबरें आती रही हैं। यह सैकड़ों सालों से चला आ रहा है। स्थिति इतनी विकट है कि सरकार को पूरे शहर को खाली कराना पड़ा। इस तरह की घटना के लिए यह कहा जाता है कि आसपास के यूरेनियम खदान के रेडियेशन से लोग प्रभावित हो रहे हैं।

The Sleep Epidemic Of Kazakhstan

हालांकि इस कस्बे के पड़ोसी कस्बे में भी युरेनियम की खादान है लेकिन वहां ऐसी कोई समस्या नहीं होती है। जो लोग बेहोश होते हैं, उनके खून  में केरेडियेशन नहीं मिलता है। यह ऐसा क्यों होता है इसका कारण विज्ञान नहीं समझा पाया है। इसलिए इस शहर को नींद की महामारी कहा जाता है। 


3- नामीबिया का फेयरी सर्कल


नामीबिया में एक घास का मैदान है, जिसमें कुछ भी नहीं उगता है। यहाँ पर गोलाकार में पैच होता है और इसका आकर एक समान होता है। इनका व्यास 10-65 फीट होता है। ये पैच कभी भी एक-दूसरे के साथ ओवरलैप नहीं होते हैं और हमेशा समान रूप से फैले होते हैं। कभी-कभी ये हजारों मील तक फैलते हैं। 

The Fairy Circle Of Namibia
 

इस घटना के पीछे यह तर्क दिया जाता है कि ये पैच दीमक द्वारा बनाए जाते हैं। हालाँकि टेस्टिंग करने पर दीमक का नामोनिशान ज्यादा नहीं मिला। विज्ञान अभी भी नहीं समझ पाया है कि आखिर ये गोले पैच कौन बनाता है, वो इतने समान आकार में। 


4- ताओस हुम

अगर आप उन लोगों में से एक हैं जो टीवी और बिजली के तारों की गुनगुनाहट को आसानी से सुन लेते है तो तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये आवाजें कितनी परेशानी वाली हो सकती है। मैक्सिकों के ताओस में इस तरह की गुनगुनाहट की आवाज हमेशा आती रहती है। 1990 के दशक से ऐसा होता आ रहा है। यह गुनगुनाहट का शोर लगातार जारी है। इस आवाज से यहाँ के रहने वाले आदी हो चुके हैं। स्थानीय सरकार आज भी इस तरह के शोर क्यों होता है, इसका पता लगाने में लगी हुई है। 

The Taos Hum

वैज्ञानिकों का कहना है कि यहाँ के लोगों की गुनगुनाहट की आवाज सुनने की क्षमता बहुत ज्यादा है इसलिए वे ऐसी आवाजों को ज्यादा आसानी से सुन लेते हैं। यह यहाँ के लोगों की विलक्षण प्रतिभा है। 


5- मिनेसोटा में डेविल्स केटल


मिनेसोटा में एक नदी है जिसे ब्रुले नदी कहा जाता है। नदी का यह प्रवाह चट्टानों में बंट जाता है। नदी का आधा हिस्सा लेक सुपीरियर में बहता रहता है, लेकिन बाकी आधा एक रहस्य बना हुआ है। यह गायब हुआ पानी का प्रवाह एक चट्टान की बिल में जाता है जिससे ऐसा लगता है कि पानी का प्रवाह गायब हो गया है। दूसरे आधे हिस्से के लिए धारणा यह है कि यह जल प्रवाह भूमिगत गुफाओं में जाता है और फिर कई जगहों से होता हुआ नदी में जाकर मिल जाता है। 

Devils Kettle In Minnesota


हालांकि यह सिद्धांत अभी तक सिद्ध नहीं हुआ है क्योंकि कोई सबूत नहीं है। वैज्ञानिकों ने डाई का उपयोग करके इस जल प्रवाह के साथ प्रयोग करके देखा है कि झील का कौन सा हिस्सा रंगीन पानी के साथ समाप्त होता है। उन्होंने पिंग पोंग गेंदों को पानी में डालने की भी कोशिश की, यह देखने के लिए कि क्या यह कहीं से ऊपर आती है। अब तक ऐसा क्यों होता है इसका पता नहीं चल पाया है। 

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